कहाँ खोई प्रतिभा लौट के आई, भारत को पहचान दिलाई, विश्व ने माना योग का लोहा, योग ने दुनिया का मन मोहा, अफसर हो या चपरासी, चाहे कितनी आपाधापी, उठी प्रेम से सबकी नज़र, योग ने किया बेहतरीन सफर, आसन हो या प्राणायाम, कूदते फांदते करते व्यायाम, सड़क पे उतरी सरकार, “स्वस्थ विश्व” सपना होता साकार, योग ने दिया भारत …
Read More »Sanskrit Poem on Importance of Yoga योगस्य महत्त्वम्
योगस्य महत्त्वम् योगः भारतस्य आधारः अस्ति। योगं विना वयं स्वस्थः सानन्दः च भवितुम नशक्नुमः। सर्वप्रथम महर्षि पतञ्जलिः योगसुक्तम् प्रतिपादितम। अस्मिन् ग्रन्थे अष्टांग-योगस्य वर्णनम् अस्ति। सम्प्रति महानगरे प्रदूषणस्य समस्या अस्ति। ध्वनि, वायुः एवम् जलप्रदूषण: महानगरस्य जीवनस्य विकटसमस्या अस्ति। एकल परिवारः महानगरस्य यथार्थ: एतेन कारणेन जनाः रुग्नाः भविन्त। समयाभावेन जनेषु परस्परम् प्रेमः स्नेहः च न अस्ति। वयम् सर्वे तनावग्रस्ताः भवामः। अतएववयम् नूनं योगः करणीय:। प्रतिदिनम् प्रातः सायं योगम् पूजनीयम्। केवलम् योगेन वयम् स्वस्थः …
Read More »Hindi Poem on Yoga & Meditation ध्यान और योग
प्रकृति की गोद में, करें ध्यान और योग, प्राणायाम से नष्ट हों जीवन के सब रोग। जीवन के सब रोग मिटें, आनंद मिलेगा, सकारात्मक उर्जा होगी तो हृदय खिलेगा। कवि हो जाता धन्य देख यह दृष्य सुहाना, ऐसे सुख से बढ़ कर सुख न हमने जाना। ~ रजनीश माँगा क्या है “ध्यान और योग” का मेल ‘ध्यान’ चेतन मन की …
Read More »कोयल: सुभद्रा कुमारी चौहान की हिंदी बाल-कविता
Here is an old classic poem that many of us have read in childhood. Poetess is the Late and Great Subhadra Kumari Chauhan. Many of her other very famous poems like “खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी“ कोयल: सुभद्रा कुमारी चौहान देखो कोयल काली है, पर मीठी है इसकी बोली। इसने ही तो कूक-कूक कर आमों में …
Read More »विद्यालय मैगजीन से हिंदी बाल-कविताएँ
गुरु: प्रभलीन कौर गुरु अनहद का नाद है, गुरु बोध का स्वाद है। गुरु शरणागत की शक्ति है, गुरु स्नेह की पवित्र धारा है।। गुरु बेसहारों का सहारा है, गुरु अनंत कृपाओं का सागर है। गुरु अनुभव की छलकती गागर है, गुरु नवजीवन की भोर है।। गुरु प्रेम की सुंदर डोर है, गुरु सत्य का सुखद स्पर्श है। गुरुदेव है, …
Read More »एषा मम धन्या माता: Sanskrit Poem on Mother
एषा मम धन्या माता एषा मम धन्या माता । एषा मम धन्या माता।। ध्रुवपदम्। या मां प्रातः शय्यातः जागरयति सम्बोधनतः। हरस्मिरणं या कारयति। आलस्यं मम नाश्यति।। एषा मम…। कुरु दत्तं ग्रहकार्यम् त्वम्, कुरु सुत! पाठभ्यासं त्वम्। आदेश ददती एवम् योजयते कार्ये नित्यम्।। एषा मम…। मधुरं दुग्धं ददाति या स्वादु फलं च ददाति या। यच्छति महां मिष्टान्नम् यच्दति महां लवणत्राम्।। एषा …
Read More »धूप सा तन दीप सी मैं: महादेवी वर्मा जी की हिंदी कविता
महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद में हुआ। प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. किया तथा प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनीं और आजीवन वहीं रहीं। महादेवी वेदना की गीतकार हैं, जिसकी अभिव्यक्ति छायावादी शैली में प्रकृति के माध्यम से हुई है। काव्य संकलन “यामा” के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1979 में साहित्य अकादमी फेलोशिप, 1956 में पद्म भूषण और 1988 में …
Read More »संस्कृत कविताएं विद्यार्थियों और बच्चों के लिए
मां माँ, माँ त्वम् संसारस्य अनुपम् उपहार, न त्वया सदृश्य कस्याः स्नेहम्, करुणा-ममतायाः त्वम् मूर्ति, न कोअपि कर्त्तुम् शक्नोति तव क्षतिपूर्ति। तव चरणयोः मम जीवनम् अस्ति, ‘माँ’शब्दस्य महिमा अपार, न माँ सदृश्य कस्याः प्यार, माँ त्वम् संसारस्य अनुपम् उपहार। ~ केसिया कुन्जुमौन, दशवीं-बी, St. Gregorios School, Sector 11, Dwarka, New Delhi – 75 जय वृक्ष! जय वृक्ष श्रूयताम् सर्वे वृक्षपुराणम्, …
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