रसोई के उत्तर-पूर्व की ओर हल्के सामान का भंडारण करें, जबकि दक्षिण और पश्चिम की ओर भारी वस्तुओं का। भोजन कक्ष का निर्माण रसोई घर के नजदीक ही करना चाहिए, यथासंभव पूर्व या पश्चिम की तरफ हो। बैठने का आयोजन इस प्रकार हो कि खाने वाले का मुंह दक्षिण की तरफ न हो।
वास्तु वास्तविकता में जीवन को दिशा देने का विज्ञान है। मूलतः यह विज्ञान दिशाओं का ज्ञान देता है तथा जीवन को शैली प्रदान करता है। वास्तुशास्त्र में भोजन हेतु प्रयोग में लिए जाने वाले बर्तनों के बारे में कहा गया है की एकदम साफ बर्तनों में ही भोजन करना चाहिए। गंदे अथवा धूल-मिटटी चढ़े हुए बर्तन इस्तेमाल में नहीं लाने चाहिए। घर में कदापि टूटे-फूटे बर्तन नहीं रखने चाहिए। यदि किसी पात्र में कोई खरोंच आदि जैसा निशान भी आ जाए तो भी उसे भोजन करने हेतु इस्तेमल में नही लाना चाहिए।
जो कोई प्रतिदिन पूरे संवत्-भर मौन रह कर भोजन करते हैं, वे हजारों-करोड़ों युगों तक स्वर्ग में पूजे जाते हैं अर्थात जो व्यक्ति संतोष के साथ जो मिले उसी पर संतुष्ट रहता है, उसे पृथ्वी पर ही स्वर्ग का सुख प्राप्त होता है। उसे न तो कोई दुख होता है और न ही कोई कष्ट।