अल्जाइमर 60 – 65 वर्ष से अधिक आयु में होने वाला सामान्य, भूलने वाला रोग है। यह डिमेंशिया (मनोभ्रंश) का एक खतरनाक रूप है। वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. समीर के. कालरा के अनुसार अल्जाइमर डिमेंशिया एक न्यूरोलॉजिकल समस्या है।
अल्जाइमर के लक्षण:
- इनमें मस्तिष्क की कोशिकाओं का आपस में संपर्क खत्म हो जाता है।
- रोगी को चीजों और लोगों के नामों को याद रखने में दिक्कत होने लगती है तथा याद्दाश्त लगभग चली जाती है।
- वह डिप्रेशन और चिन्ता से ग्रस्त रहता है।
- स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। दु:खी, क्रोधित और लाचार महसूस करने लगता है।
- रोगी का व्यवहार समाज के प्रति गैर-जिम्मेदाराना हो जाता है।
- बार-बार मूड बदलने लगता है।
- चीजें यहां-वहां रखकर भूल जाता है।
- एक ही बात या वाक्य को बार-बार दोहराता है।
- रोग बढ़ जाने पर, रोगी को अपनी दिनचर्या के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है।
- बोलने, लिखने और पढने में भी समस्या आती है। अपने परिवार के सदस्यों को नहीं पहचान पाता।
- पीड़ित व्यक्ति की लिखावट को पहचान पाना मुश्किल होता है।
- पीड़ित व्यक्ति में बिना वजह गुस्सा करने तथा बेवजह घंटों तक एक काम करने की प्रवृत्ति होती है।
- व्यक्ति चाहकर भी कुछ याद नहीं रख पाता और कुछ समय पहले हुई घटना को भी भूल जाता है।
- इधर-उधर भटकना और कभी-कभी खो भी जाना।
- अपने घर में जाने का रास्ता भूल जाना।
- पेशाब इत्यादि न रोक पाना।
- रोगी का शंकालु, डरपोक और भ्रमित व्यक्तित्व का होना।
- खाना खाकर या चाय पीकर भूल जाना और दोबारा मांगना।
कारण:
अल्जाइमर की शुरुआत धीरे-धीरे होती है। उम्र, अनुवांशिकी, पर्यावरणीय कारक, जीवन-शैली और स्वास्थ्य समस्याएं भी अल्जाइमर को बढ़ाने का काम करते हैं। इनमें प्रमुख हैं:
- अगर परिवार में माता-पिता या दूसरे रिश्तेदारों को अल्जाइमर है तो अगली पीढ़ी में इसकी आशंका बढ़ जाती है।
- कभी सिर में गम्भीर चोट लगी हो तो इसका खतरा बढ़ जाता है।
- अनुसंधानों से यह भी पता लगा है कि जो लोग धूम्रपान करते हैं, जिनके शरीर में ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल का स्तर अधिक होता है या जिन्हें डायबिटीज होती है, उनमें इस रोग के विकसित होने की आशंका बढ़ जाती है।
- बदलती जीवन-शैली तथा कम नींद लेना भी इस रोग के कारण हैं।
- एक अध्ययन के अनुसार, दिमाग के ज्यादा सक्रिय रहने से एमीलॉयड बीटा प्रोटीन ज्यादा पैदा होती है, जिससे अल्जाइमर रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।
- आयुर्वेद के अनुसार, इस बीमारी का मुख्य कारण वात, पित्त और कफ में होने वाला असंतुलन है।
- नकारात्मक भावनाएं।
- तनाव।
- चिकित्सकों का मानना है कि कम उम्र में इस रोग के शुरू होने का कारण फल और सब्जियों में कीटनाशकों का ज्यादा इस्तेमाल भी है।
- डिप्रेशन, उत्तेजना, एलर्जी और पार्किन्सन रोगों उपचार के लिए दी जाने वाली दवाओं से होने वाले साइड इफैक्ट्स भी अल्जाइमर रोग को जन्म देते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ फिनलैण्ड के शोधकर्ताओं ने अपने शोध की एक रिपोर्ट में बताया है कि अल्जाइमर रोगियों में दर्द दूर करने वाली तेज दवा के प्रयोग से फिप फ्रैक्चर का जोखिम दो गुना हो जाता है। कुछ तथ्य दर्शाते हैं कि जो कारक हृदय रोगों का खतरा बढ़ाते हैं, वही अल्जाइमर को भी बढ़ा देते हैं। इनमें से कुछ हैं: व्यायाम की कमी, मोटापा, धूम्रपान, उच्च रक्तचाप, ऐसे भोजन जिनमें फलों और सब्जियों की मात्रा कम हो।
कृपा ध्यान दे: जिन लोगों के सिर पर गहरी चोट लगी हो उनके अल्जाइमर की चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है।
अल्जाइमर का निदान (Diagnosis):
कई तरह की जांचों द्वारा रोगी की मानसिक स्थिति जांची जाती है। सबसे पहले मनोवैज्ञानिक की जाती है। इसमें मुख्य रूप से याद्दाश्त का परिक्षण किया जाता है। ब्रेन स्कैन द्वारा यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि मस्तिष्क में क्या परिवर्तन हो रहा है। इसमें दो तरह की स्कैनिंग प्रमुख है – CT स्कैन और MRI. कहते हैं A PET स्कैन से बेहतर परिणाम मिलता है। वास्तव में अल्जाइमर एक ऐसा रोग है, जिसमें रोगी को पता ही नहीं चलता कि कब यह रोग मस्तिष्क को प्रभावित करके उसकी याद्दाश्त व सोचने-समझने की क्षमता में अवरोध पैदा करने लगा है।
अल्जाइमर का उपचार:
- नियमित योगाभ्यास को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाने से इस रोग पर नियन्त्रण पाया जा सकता है।
- भूल जाने की समस्या से मुक्ति पाने का सर्वश्रेष्ट उपाय स्वयं पर यह विश्वास बनाए रखना होगा कि मुझे याद रह सकता है और मुझे याद रखना है क्योंकि यह मेरे अस्तित्व को बनाए रखने के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
- किसी भी सूचना या जानकारी को याद रखने का दूसरा तथा स्थाई तरीका है लिख लेने की आदत को विकसित करना। जैसे ही आपके पास कोई सूचना या जानकारी आए, उसे तुरन्त अपनी डायरी में लिख लें, जैसे कि किसी का जन्मदिन, विवाह की तिथि, किसी के द्वारा दी गई कोई भेंट, पास-पड़ोस में अथवा शहर / देश में घटित ऐसी घटना, जो महत्वपूर्ण लगे, दुर्घटना आदि। इसी प्रकार, किसी का निमन्त्रण मिले या सुबह से शाम तक किए जाने वाले कामों को प्राथमिकता के क्रम में लिख लें। लिखने की आदत से भूलने की आशंका नहीं रहेगी।
- रात को कम से कम छह घंटे की गहरी नींद अवश्य लें।
- रबड़ नेति / सूत्र नेति, जलनेति, कपालभाती करना तथा नाक में सरसों का तेल या बादाम रोगन डालना।
- ओम् का जाप, सूर्य नमस्कार की छठी स्थिति, योग मुद्रा, शिथिलासन, चक्रासन, सर्वांगासन, विपरीतकरनी, शवासन, योग निद्रा, अनुमोल-विलोम प्राणायाम, कपालभाती प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम का नियमित, प्रतिदिन, दीर्घकाल तक अभ्यास अल्जाइमर के रोग को नियन्त्रित करने में सहायक रहेगा।
- अल्जाइमर का कोई स्थायी उपचार नहीं है। उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल के बढ़े हुए स्तर और मधुमेह को नियन्त्रित करने से इस रोग की रोकथाम में मदद मिलती है।
- मस्तिष्क को सक्रिय रखना भी इस रोग के नियंत्रण में सहायक है।
- रोगी का भोजन शाकाहारी किन्तु हल्का व सुपाच्य होना चाहिए। अच्छा रहेगा कि रोगी को भोजन किसी की निगरानी में कराएं।
कुछ अन्य सुझाव:
- दिवार पर बड़े अंकों वाला कैलेंडर व घड़ी टांगें।
- रोगी की दिनचर्या यथा प्रातः उठना, नहाना, योगाभ्यास / व्यायाम, नाश्ता, घूमना, भोजन आदि एक निश्चित समय पर होने से उसे समय का अनुमान रहेगा।
- रोगी से बातचीत करते रहें।
अल्जाइमर नाम कैसे पड़ा:
सर्वप्रथम यह बीमारी 1907 में जर्मन न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. एलोइस अल्जाइमर ने पहचानी थी। उन्होंने देखा कि कुछ लोग जो चालीस-पचास वर्ष के होते हैं, उनमें खासकर यह समस्या होने लगती है। डॉ. एलोइस अल्जाइमर ने एक 55 वर्ष की महिला के मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिका समूह देखा, जिसमें न्यूरोन (कोशिकाएं) के छोर खराब हो गए थे। इस खराब हुई संरचना को एमाईलॉइड कहा गया और यह मानसिक बीमारी उन्हीं के नाम पर अल्जाइमर की बीमारी के नाम से जानी जाने लगी।
बढती उम्र के साथ होने वाली बीमारी “अल्जाइमर” अब युवाओं को भी अपनी गिरफ्त में ले रही है। इसकी गम्भीरता को देखते हुए सितम्बर महीने को विश्व अल्जाइमर्स माह के रूप में मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पूरे विश्व में लगभग चार करोड़ लोग अल्जाइमर रोग से पीड़ित हैं तथा वर्ष 2025 तक यह संख्या दो गुनी होने का अनुमान है। अल्जाइमर एक लगातार बढने वाला रोग है। जैसे-जैसे यह रोग बढ़ता जाता है, मस्तिष्क का अधिक से अधिक भाग क्षतिग्रस्त होता जाता है।