लोहार की धौंकनी के समान श्वास-प्रश्वास को शक्ति-पूर्वक लेना और छोड़ना भस्त्रिका कहलाता है। जैसे – स्वर्ण की मल-शुद्धि सुनार की धोंकनी से होती है, उसी प्रकार इस प्राणायाम में शरीर की मल-शुद्धि होती है। इसका अभ्यास सर्दी के मौसम में करना उपयुक्त है। शरीर में प्राण एवं गर्मी का प्रचुर मात्रा में संचार इसके अभ्यास से होता है।
भस्त्रिका प्राणायाम: Bhastrika pranayama
इस प्राणायाम के अभ्यास से मुख्य लाभ इस प्रकार हैं:
- प्राणों का अधिक समावेश भस्त्रिका से होता है तथा क्रमशः सूर्यनाड़ी, चंद्रनाड़ी एवं सुषुम्ना का शोधन होकर प्राण सुचारु रूप से प्रवाहित होने लगता है।
- अभ्यास के दृढ़ होने पर, ब्रह्मग्रंथि,विष्णुग्रेथि तथा रुद्रग्रेथ खुलती है। तभी प्राण का प्रवाह सुषुम्ना से संभव होता है।
- वात, पित्त एवं कफ संबंधित सभी दोषों में लाभ मिलता है। जैसे-दमा, टी.बी, खाँसी, पित्ती उछलना, छाती में जलन, वायुदर्द आदि।
- गले की सूजन व मंदाग्नि ठीक होती है।
- रक्तशोधन की क्रिया बहुत तीव्र होती है एवं रकक्त-संचार क्रिया भी तेज होती है।
- मूर्धानाडी, जो मस्तक के सम्मुख से गई है, उसमें कफ आदि मल के अवरोध दूर होते हैं। सावधानी-हृदय एवं उच्च रक्तचाप के रोगियों को यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए ।
विधि:
(क) पहली अवस्था:
- पद्मासन में कमर व गर्दन सीधी करके बैठें। बायीं हथेली बाएं घुटने पर रखें। दाएँ हाथ की प्राणायाम मुद्रा बना कर, अनामिका उँगली से बाएं नासारन्ध्र को बंद कर लें। श्वास को शक्ति से लें और छोडें। लगभग 20 श्वास लेने पर गहरा, पर धीरे-धीरे नासिका के दायीं ओर से ही भर लें। तीनों बंध (मूल, उडिडियान, जालंधर बंध) लगाएँ। शक्ति के अनुसार आंतरिक कुंभक करें। इसके पश्चात् श्वास को अत्यंत धीरे-धीरे, बायीं ओर से बाहर निकालें। यथाशक्ति रोक (आंतरिक कुंभक से आधा समय तक) कर तीनों बंध लगाएँ। श्वास सामान्य | शांत बैठ मानसिक स्थिति का अवलोकन करें।
(ख) दूसरी अवस्था:
- अंगूठे से दाएं नासिकापुट को दबाते हुए अब बाएं नासारन्श्र से श्वास को शक्ति से लेना-छोड़ना प्रारंभ करें। निश्चित आवृत्तियाँ करने पर श्वास को गहरा, पर धीरे-धीरे बाएं नासारन्ध्र से भरें। तीनों बंध लगाते हुए । शक्ति के अनुसार आंतरिक कुंभक से आधा समय तक बाह्य कुंभक करें और तीनों बंध क्या लगाएं। इसके पश्चात् श्वास को धीरे-धीरे, बायीं ओर से बाहर निकालें। श्वास सामान्य | शांत बैठ मानसिक स्थिति का अवलोकन करें। हे.
(ग) तीसरी अवस्था:
- दायीं ओर से भरें, बायीं ओर से निकालें। बायीं ओर से भरें, दायीं ओर से निकालें। पर क्रिया शक्ति के साथ हो। निश्चित आवृत्तियों के पश्चात्, दायीं ओर से गहरा श्वास भरें | त्रिबंध व आंतरिक कुंभक में क्षमतानुसार रुकें। बायीं ओर से गहरा श्वास बाहर निकालते हुए, आधे समय तक बाह्य कुंभक में त्रिबंध लगाएँ। शांत बैठ, मानसिक स्थिति का अवलोकन करें। शांत बेठें।
(घ) चौथी अवस्था:
- पश्चात् दोनों हाथों को घुटने पर रख कर दोनों नासारन्ध्र से शक्ति से श्वास-प्रश्वास लें। अंत में दोनों नासारन्ध्र से श्वास को धीरे-से भरें। तीनों बंध लगाकर, शक्ति के अनुसार आंतरिक कुंभक करें। श्वास को अत्यंत धीरे-से दोनों नासारन्ध्र से बाहर निकालें, बाह्य कुंभक में आंतरिक कुंभक से आधे समय तक रुकें। यह एक आवृत्ति हुई। श्वास सामान्य। शांत बैठ मानसिक अवस्था का अवलोकन करें।