इस रोग के कई कारण हो सकते हैं। लेकिन कोई भी एक कारण ज्ञात नहीं है, जो सभी प्रकार के रोगियों में हों। इसलिए इसके उपचार की भी कोई पक्की जानकारी नहीं है। शरीर की सफाई रख कर तथा योगाभ्यास से इस रोग को काफी हद तक नियंत्रण में लाया जा सकता है।
मिर्गी के लक्षण:
- हाथ, पैर और चेहरे की मांसपेशियों में तेज खिंचाव व अकड़न।
- शरीर व सिर का तेजी से कांपना, झटके लगना और चक्कर आना।
- मुख से झाग का निकलना।
- आँख फटीफटी-ऊपर या नीचे की ओर होना।
- दाँत जबड़े बंद, कई बार जीभ का कट जाना।
- मल-मूत्र का त्याग, पसीना आना।
- श्वास लेने व निकालने में तकलीफ।
- गर्दन टेढ़ी हो जाना।
- पेट में तेज दर्द।
- दौरे के बाद सुस्त हो जाना, अधिक नींद आना, कुछ याद नहीं रहता, स्मरण-शक्ति कमजोर होना है। दौरे की स्थिति में 20 -30 मिनट तक छटपटाना, बाद में शांत होना या बेहोशी होना। कई बार लकवा, पागलपन या मृत्यु भी संभव है।
मिर्गी के लक्षण, कारण, इलाज, दवा, उपचार और परहेज – Mirgi (epilepsy) treatment in Hindi
मिर्गी के कारण:
- जन्म के समय मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी
- अनुवांशिक (5 गुणी संभावना)
- ब्रेन ट्यूमर या रसौली
- सिर में चोट लगना
- दवाइयों का अधिक प्रयोग (विशेषतः डिप्रेशन वाली)
- अत्यधिक मदिरापान या अन्य नशा करना
- मासिक धर्म में गड़बड़ी
- शरीर में विषैले पदार्थों का जमा होना
- मानसिक तनाव या शारीरिक तनाव
- पेट या मस्तिष्क में कृमि होना
- उच्च रक्तचाप के कारण दिमाग की नस फटना
- गंदा पानी पीना या गंदे पानी में फल व सब्जियों को धोना
उपचार:
- शुद्धिकरण: शरीर की सफाई करें। कुंजल नेति, एनिमा को अपनाएं। प्रातः तांबे के बर्तन में रखा पानी पीएं। त्रिफला का उपयोग करें। शरीर में विषैले तत्व न रहें।
- भोजन सुपाच्य ही लें, जिससे शरीर में विषैले तत्व न बनें। फलों का रस, बेल, ताजे मौसम के फल, सलाद व सब्जियों का प्रयोग करें। छाछ भी फायदेमंद रहेगी।
- योग, आसनों के अभ्यास से पूरे शरीर में रक्त संचार की प्रक्रिया अच्छी बनेगी। इसलिए ताड़ासन, वृक्षासन, त्रिकोणासन, उष्ट्रासन, शशकासन, हलासन, सर्वांगासन, पवनमुक्तासन उपयोगी हैं।
- प्राणायाम: के अभ्यास से मस्तिष्क व शरीर को अधिक ऑक्सीजन मिलेगी तथा शरीर का विषैलापन कार्बनडाइऑक्साइड के रूप में शरीर से बाहर निकलेगा। इसलिए गहरे व लंबे श्वास, अनुलोम-विलोम, कपालभाति, उज्जाई, भ्रामरी व नाड़ी शोधन प्राणायाम लाभकारी हैं।
- ध्यान व योग निद्रा बहुत उपयोगी रहेगी, जिससे शारीरिक व मानसिक तनाव समाप्त होंगे।
- 1 बादाम, 1 बड़ी इलायची, 15-20 अमरुद और अनार के पत्ते 2 गिलास पानी में उबालें। जब 1 गिलास पानी रह जाए, नमक मिलाकर पीएं। लगभग 15 दिन तक दिन में दो बार पीएं।
- प्रातः खाली पेट 1/2 किलो अंगूर का रस पीएं।
- गीली मिट्टी पर पूरे शरीर पर लेप करें।
- गाजर, मूँगफली, चावल, हरी पत्तेदार सब्जियाँ और दालों का सेवन करें।
- कार्बोहाइड्रेट कम और वसायुक्त भोजन अधिक लें।
- 20 तुलसी के पत्तों का रस, सेंधा नमक मिलाकर दौरा पड़ने पर पिलाएँ।
- करोंदे के पत्तों से बनी चटनी खिलाएं।
- सफेद प्याज का एक चम्मच रस प्रतिदिन पीएं।
- पेठे का उपयोग सब्जी या जूस के रूप में करें।
- प्रातः त्रिफला गुनगुने पानी के साथ लें।
- सारस्वत चूर्ण आधी से पौनी चम्मच प्रातःकाल खाली पेट गुनगुने पानी से लें।
- मानसिक तनाव से बचें।
- पूरी नींद लें।
- एनिमा लेकर 5 दिन का उपवास, बाद में फल, रस व सूप लें।
सावधानियां:
- दौरे के समय चप्पल, जूता न सुंघाएँ
- झाग बाहर निकले, अंदर न जाए
- मुँह में चप्पल डाल कर जीभ कटने से बचाएँ
- रोगी को खुली व स्वच्छ हवा मिले