क्या है मानसिक रोग:
जब बुद्धि स्थान की निर्बलता हो जाए और भाव का स्थान प्रबल हो जाएं, जिससे चिंता, शोक, भय आदि भाव निरन्तर उत्तेजित रहने लगें तब इसे मनोरोग मानस रोग / मानसिक रोग कहते हैं। यह भावप्रधान रोग होता है।
क्यों होते हैं मानसिक रोग:
कुछ रोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते हैं, जिनका मन कमजोर होता है तथा जिनकी संकल्प शक्ति कमजोर होती है, वे प्रायः मानसिक रोगों की चपेट में आ जाते हैं। जिन बालकों का मानसिक विकास नहीं होता या जिनकी बीमारी की अवहेलना हो जाती है, जिन्हें मानसिक संघर्ष अधिक करना पड़ता है उन्हें भी ये रोग सताते हैं। इनके अतिरिक्त संयुक्त परिवार का दबाव, दूसरों का दुर्व्यवहार, अनमोल विवाह, माता-पिता का पक्षपात, असफल प्रेम, मनचाही नौकरी न मिलना, व्यापार में असफलता मिलना, दिमागी इन्फेक्शन होना, अधिक नशाखोड़ी, दिमाग तक खून न पहुँचना तथा अपराधी वृत्ति वाले व्यक्ति को मानसिक रोगी होने की सम्भावना होती है। भावात्मक असन्तुलन के अतिरिक्त सिर में चोट लगने से आने वाली विकृति भी एक कारण बनता है। ज्ञानेन्द्रियों (Senses) की संवेदन शून्यता भी मानसिक रोगी बनाती है। नकारात्मक सीरियल भी इसी ओर ले जाते हैं। मानसिक आघात भी मानसिक रोग पैदा करता है। शल्य चिकित्सा व प्रसव के समय शरीर कमजोर होना, शारीरिक भयंकर रोग होना, सही पोषण न होना, युवा अवस्था (16-20) वर्ष के प्रारम्भ में भी यह रोग हो सकता है। इच्छाएँ पूर्ण न होने तथा विकट परिस्थिति से तालमेल बिठाने में असफल होना, पूर्ण परिपक्वता न हो पाना, किसी रोग होने की झूठी धारणा बन जाना आदि कारण मानसिक रोगों के आधार हैं।
मानसिक रोग के प्रकार:
- न्यूरोसिस (Neurosis): गलत मानसिक दृष्टिकोण से आया भावात्मक असन्तुलन। इसमें दुश्चिंता, निराशा, हताशा, भ्रामक विचार आना, वहम (छुआछूत, सफाई) तथा न्यूरो स्थिनिया (कोई रोग न निकलने पर भी रोगी समझना)।
- साइकोसिस (Psychosis): गंभीर भावात्मक असन्तुलन या पागलपन के रोग। इसमें रोगी की तर्क-शक्ति व निर्णय-शक्ति खो जाती है। सोच-समझ में बुनियादी खराबी आ जाती है। सोच-समझ में बुनियादी खराबी आ जाती है। हर बात में वह खुद को सही ठहराता है। उसकी असलियत की पहचान खो जाती है। उसकी सामाजिक स्थिति गड़बड़ा जाती है। उसकी कार्यक्षमता घट जाती है।
- साइकोटिक (Psychotic): इसके रोगियों में हताशा (Depression) रोने व आत्महत्या का द्वन्दू झूलने लगता है। स्किजोफ्रोनिया (विभाजित मन की बीमारी) इसमें आती है। पैरानायड रोग भी इसी का रूप है।
- साइकोसोमेटिक (Psychosomatic): इसमें मन व शरीर की बीमारियां आती हैं।
- मेंटल रिटार्डेशन (Mental Retardation): इसमें व्यक्ति कारणवश या जन्मजात मानसिक बाधता का शिकार होता है।
- साइकोपैथ (Psychopath): इसमें आपराधिक मानसिकता वाले रोगी आते हैं।
मानसिक रोगों के लक्षण:
यूं तो हर रोग के अलग-अलग लक्षण होते हैं परन्तु मानसिक रोगों के सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं: असामान्य व्यवहार करना, शरीर में रोग न होने पर रोग को महसूस करना, उदासी, चिंता, तनाव, तन-मन में असन्तुलन, अकारण शक करना, दूसरों से सहानुभूति पाने की इच्छा, अधिक बोलना या न बोलना, बड़बड़ाना, श्वास गति तेज या मन्द होना, तन्द्रा-सी रहना, निस्तेज आँखें रहना तथा अपने को तुच्छ या महान समझना। एक शब्द को या वाक्यांश को दोहराना, एक ही विचार दिमाग में घूमता रहे, छोटी-सी बात को लंबी बना कर कहना, स्मृति लोप होना, एकाग्रहीनता, पानी / जानवरों से भय लगना, संसार को झूठा समझना, मांसपेशियों का कार्य न करना, हकलाना, तुतलाना, ध्वनिलोप, लेखन अक्षमता, घंटों एक ही स्थिति में बैठे रहना, संकल्प शक्ति का ह्रास होना, कोई व्यसन पाल लेना, समाज विरोधी काम करना, उदासीनता आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
उपचार:
- यम-नियम का पालन करें।
- चक्रासन, हलासन, सेतुबंधासन, सुप्तवाजसन, मत्स्यासन, सर्वागांसन, भ्रामरी प्राणायाम, अनुलोम-विलोम, गगनभेदी, कपालभाती प्राणायाम 15-20 मिनट तक करना।
- ध्यान व योग निद्रा करें।
- सकारात्मक सोच अपनाएं, प्रेरक पुस्तकें पढ़ें, हॉबी शुरू करें, कीर्तन करें, गतिशील रहें।
- सन्तुलित सात्विक आहार लें तथा खूब हँसें।
- ब्राह्मी घृत 6 माशा, सर्पगंधा चूर्ण आधा माशा, मकरध्वज आधी रत्ती दूध से लें।