सिजोफ्रेनिया के लक्षण:
इसमें रोगी में कई प्रकार के लक्षण पाये जाते हैं। जैसे:
- उदासीनता (Emotional): रोगियों में उदासीनता इतनी होती है कि इनका मित्रों, परिवार, समाज तथा बाहरी दुनिया से सम्पर्क नहीं रहता। ये सुख-दुःख का अनुभव नहीं कर पाते। इनकी भावनाएं समाप्त हो जाती हैं, अकेले बैठे रहते हैं, किसी से वर्तालाप नहीं करते। इन्हें भूख, प्यास का भी ज्ञान नहीं रहता। कार्य, पढाई तथा भोजन में रूचि नहीं रहती। साफ-सफाई में अरूचि रहती है। रोगी की नींद व अन्य शारीरिक आवश्यकताएं भी बिगड़ जाती हैं। रोगी को नित्यप्रति की सामान्य गतिविधियों को पूरा करने की समस्याएं रहती हैं।
- किसी वस्तु की अनुपस्थिति में उसे उपस्थित समझना (Hallucination): इसमें रोगी किसी वस्तु या व्यक्ति की अनुपस्थिति पर भी उसे देखता है। जैसे: गंध न होते हुए उसकी अनुभूति करना, आवाज न होने पर भी आवाज सुनने का अनुभव होना, एलियंस से सम्पर्क तथा भगवान को देखना आदि का अनुभव होना।
- अतिभ्रम की समस्या (Delusion): रोगी सोचता है की आस-पास के लोग उसके विरुद्ध साजिश कर रहे हैं। ऐसा संदेह होना कि लोग उसके विषय में चर्चा कर रहे हैं या मजाक उड़ा रहे हैं या उसकी आवाज को नियन्त्रित कर रहे हैं। विभ्रम की स्थिति होना, ऐसा लगता है कि विशेष प्रकार की आवाज सुनाई दे रही है या कुछ दिखाई देने लगता है।
- सोचने-समझने की क्षमता में विकृति (Distrusted Thought Process): रोगी के विचारों का तारतम्य टूट जाता है। एक विषय पर वार्ता करते समय अचानक दूसरी बात पर चर्चा करना, अकेले में बड़बड़ाना तथा ऐसे शब्दों का प्रयोग करना, जिनका कोई अर्थ नहीं होता। प्रश्न के उत्तर का सामंजस्य न होना, कोई दूसरी बात करना तथा अपने आप में मस्त रहना।
- उठने बैठने में असहजता (Motor Symptoms): रोगी में ऐसे लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं, जैसे उठने या बैठने में कठिनाई का अनुभव करना।
- व्यवहार सम्बन्धी (Behavioral Symptoms): रोगी का व्यवहार, असामान्य तथा असंतुलित हो जाता है। रोगी कभी-कभी बिना कारण स्वयं या किसी और को चोट भी पहुंचा सकता है। इसमें रोगी को आवेगों को नियन्त्रित करने में कठिनाई, स्थितियों के लिए अजीब भावनात्मक प्रतिक्रियाएं, भावनाओं या अभिव्यक्ति की कमी और जीवन के लिए उत्साह की कमी आदि लक्षण प्रतीत हो सकते हैं।
यह आवश्यक नहीं कि सभी में ये सारे लक्षण एक साथ प्रकट हों। ये लक्षण विभिन्न रोगियों में अलग-अलग प्रकट हो सकते हैं।
सिजोफ्रेनिया हिंदी में | मानसिक बीमारी | Causes | Symptoms | Diagnosis | Treatment | Management
सिजोफ्रेनिया के प्रमुख कारण:
सिजोफ्रेनिया के सटीक कारण अज्ञात हैं। मस्तिष्क और व्यवहार के क्षेत्र में किए गए आधिनिक अनुसंधानों से पता चला है कि यह रोग निम्निलिखित कई प्रकार के शारीरिक, आनुवांशिक, मनोवैज्ञानिक, नशीली दवाएं और पर्यावर्णीय कारणों से होता है।
- शारीरिक: मस्तिष्क तंत्रिका संचारक (Neuro Transmitters) की संरचना और कार्य भी कारण बन सकता है। मस्तिष्क में कुछ रसायनों का निर्माण, सोच और प्रभाव को प्रभावित करता है। न्यूरोट्रांसमीटर कैमिकल मस्तिष्क में सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है। शोध से प्रमाणित हुआ है कि यह रोग दो न्यूरोट्रांसमीटर के स्तर में परिवर्तन के कारण असंतुलन से हो सकता है। ये हैं: डोपामीन और सेरोटोनिन।
- आनुवांशिक (Genetics Cause): मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इसका एक कारण आनुवांशिकी भी है। माता-पिता में से किसी को यह रोग है तो उनके बच्चों को भी हो सकता है।
- मनोवैज्ञानिक: जीवन में किसी सदमे के कारण, जैसे परिवार के किसी व्यक्ति की मृत्यु, निराशा या किसी प्रकार का शोक हो सकता है। कई प्रकार की तनावपूर्ण स्थितियां जैसे वियोग, नौकरी या घर खोने का दुःख, विवाद-विच्छेद, शारीरिक, यौन या भावनात्मक दुःख आदि सीधे तौर पर इस रोग को जन्म नहीं देते परन्तु इसे बढ़ाने में सहायक हैं।
- नशीली दवाओं का सेवन (Drugs Abuse): नशीली दवाओं के अत्यधिक उपयोग से यह रोग बढ़ जाता है दवा का प्रयोग प्रतिकूल मानसिक स्तर, जैसे मानसिक तनाव, जिज्ञासा, परेशानी, उबाऊपन और अकेलेपन आदि का कारण भी हो सकता हैं।
- पर्यावरणीय कारक: प्रमाण बताते हैं कि वायरल संक्रमण जैसे कुछ पर्यावरणीय कारक इस रोग का कारण बन सकते हैं। बच्चा होने पर पिता की आयु 35 वर्ष से अधिक होना, जन्म और गर्भावस्था सम्बन्धी जटिलताएं। यह रोग उस समय होता है, जब शरीर में हॉर्मोनल और शारीरिक परिवर्तन हो रहे होते हैं, जैसे किशोरावस्था और युवा वयस्क वर्षों के समय होने वाले हार्मोन परिवर्तन।
सिजोफ्रेनिया का उपचार:
उपचार से पहले रोगी तथा परिवार वाले मनोचिकित्सक के सम्पर्क में हरें। इसका उपचार प्रायः दीर्घकालीन होता है परन्तु मनोवैज्ञानिक तरीके से इसका उपचार सम्भव है। मनोवैज्ञानिक विभिन्न प्रकार की थैरेपी से रोगी के व्यवहार को सुधारने का प्रयास करते हैं।
(ई.सी.टी.) इलैक्ट्रो कंवलजीव थैरेपी अर्थात् बिजली दुवारा उपचार भी अच्छा उपचार है। रोगी के परिजनों को समझना चाहिए कि अक्खड़ या आलसी नहीं है, उसे उपचार की आवश्यकता है। इसलिए उसकी प्रशंसा करें, मनोबल बढाएं, निरन्तर देखभाल करें और उसकी उपेक्षा या आलोचना न करें।
योग द्वारा भी इसका उपचार सम्भव है। मानसिक स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए निम्नलिखित साधन अपनी सामर्थ्यानुसार करें:
शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए योगाभ्यास में कुंजल, नेति, एनिमा, त्राटक आदि शुद्धि क्रियाएं, सर्वांगासन (See Video given below), धनुरासन, करनी विपरीत एंव योग मुद्रा, ज्ञान मुद्रा, ओम् ध्वनी आदि का अभ्यास करें। योग निद्रा, ध्यान और शुभ चिंतन करें। ये अचेतन मन के विकारों को दूर करने के लिए बहुत ही लाभकारी है। कपालभाती, भ्रामरी, अनुमोल-विलोम, नाड़ी शोधन का अभ्यास करें। अपनी सोच को सकारात्मक बनाएं। ईश्वर पर विश्वास रखें। निष्काम सेवा करें। इससे अन्तःकरण पवित्र होता है। शिकायत रहित मन बनाएं। दूसरों से अपेक्षा न करें। प्रसन्न रहने की कला सीखें। सादा, सात्विक और सुपाच्य भोजन करें। परिवार के सदस्य उपचार में सहयोग करें क्योंकि रोगी इन सभी क्रियाओं को स्वयं नहीं कर सकता।