नाभि स्थित ‘समान’ वायु को बल देता है। साथ ही वात, पित्त कफ की शुद्धि कर फेफड़ों की शक्ति को बढ़ाता है, ऊर्जा को उर्ध्वमुखी करने में सहयोगी है, सुषुम्ना नाड़ी के द्वार को खोलने में मदद करता है, साथ ही स्वाधिष्ठान व मणिपूर चक्र को जगाने वाला है।
उड्डियान बंध योगासन करने की विधि:
आंतों को पीठ की ओर खींचने की क्रिया को उड्डियान बंध योगासन कहते हैं। इसमें सांस बाहर निकालकर पेट को ऊपर की ओर जितना खींचा जा सके उतना खींचकर पीठ के साथ चिपकाया जाता है। किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठकर कमर व गर्दन को सीधा कर दोनों हाथों को दृढ़ता से घुटनों पर रख लें, दो-तीन बार लंबी गहरी सांस भरें व निकालें।
अब अधिक से अधिक सांस भर लें, फिर पूरी सांस बाहर निकाल दें। हाथों से घुटनों को दबाते हुए पेट को अंदर की ओर खींचे, पेट खींचने के बाद जब तक सांस बाहर रोक कर रख सकते हैं, तब तक पेट को भीतर की ओर खींचकर रखें। फिर पेट को ढीला छोड़ते हुए सांस को भर लें। इस प्रकार तीन से चार बार कर लें।
योगासन करते समय ये सावधानियां बरतें:
पेट में घाव, पेट का ऑपरेशन हुआ हो, हर्निया, हाईपर एसिडिटी, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप व कमर दर्द की शिकायत हो तो, इसका अभ्यास न करें ।