उज्जायी प्राणायाम करने की विधि:
इसके लिए कमर को सीधा रखते हुए आराम से बैठ जाएं, अब अपने ध्यान को सांसों पर ले आएं और सांस की गति पर ध्यान लाते हुए, अधिक से अधिक सांस बाहर निकाल दें। अब गले की मांशपेशियों को टाइट कर लें और धीरे-धीरे नाक से सांस भरना शुरू करें, सांस भरते समय गले से सांस के घर्षण की आवाज़ करें।
सांस भरते जाएं, आवाज़ होती जाए। इस प्रकार आवाज़ के साथ पूरा सांस भर लें। अब सांस भरने के बाद कुछ सेकेण्ड सांस अंदर रोकें। इसके बाद सीधे हाथ की प्राणायाम मुद्रा बनाकर नासिका पर ले जाएं और दाईं नासारंध्र को बंद कर बाईं नासारंध्र से धीरे-धीरे सांस बाहर निकाल दें। इस प्रकार 12-15 बार इसका अभ्यास कर लें।
सावधानियां:
ज्यादा जोर लगा कर आवाज़ न करें, अन्यथा गले में खराश हो जाएगी और आंखों से पानी आने लगेगा।
उज्जायी प्राणायाम करने के लाभ:
इसके अभ्यास से छाती से लेकर मष्तिष्क तक कम्पन होने लगता है, जिससे यहां रहने वाली उदान वायु को बल मिलता है और यहां स्थित समस्त अंग स्वस्थ होने लगते हैं। हृदय में होने वाली कम्पन से हृदय में आई ब्लॉकेज़ दूर होने लगती है। यह प्राणायाम अस्थमा, सांस फूलना व फेफड़ो की कमज़ोरी में बड़ा लाभकारी है।
थाइरॉइड ग्रंथि के रोग को भी यह दूर करता है और उसको स्वस्थ बनाए रखता है। साथ ही गले में कफ का जमाव और सोते समय खर्राटे की समस्या को दूर करने वाला है। इसके निरंतर अभ्यास से वाणी में मधुरता आती है।